Thursday, February 10, 2011

तुम हमें ही...


'क्या बात है! क्या चाहिए? 

ताज़ी हवा के झोंकों के बीच यह आवाज सुनकर मैं चौंका। सुबह जल्दी आंख खुलने पर मैं बाग की तरफ निकला था और एक नीम के पेड़ के नीचे खड़ा था।
'क्या मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं?
इस बार आवाज पहले से ज्यादा स्पष्ट थी। 
कौन हो सकता है, मैं सोच ही रहा था कि आवाज फिर उभरी- 'मैं नीम हूं। जिसकी छांव में तुम बैठे हो।
'आप... मैं हकबकाया ,, आप बोल सकती हैं? मेरा आश्चर्य प्रश्न में बदला। 
'हां क्यों नहीं। लेकिन क्या तुम सुन सकोगे?
'क्यों नहीं मेरे दोनों कान सही-सलामत हैं। मैंने कहा। 

'मेरी बात कान से नहीं, दिल से सुनी जा सकती है।
'कहिए, मैं दिल से सुनूंगा। मैंने आश्वासन दिया। 
नीम कहने लगी- 'मैंने मनुष्य के लिए क्या नहीं किया? खुद  गर्मी झेली लेकिन मनुष्य को पत्तियों की ठंडी छांव में सुलाया। जख्मों पर लेप बनी। सुबह दातुन बनकर मुंह साफ किया। यही नहीं, जिन्होंने मेरी पत्तियों का सेवन किया उनकी काया को रोग-दोष मुक्त रखा। खुद कार्बनडाई आक्साइड पीती रही लेकिन मनुष्य को प्राणदायिनी वायु बांटती रही। मेरी सूखी पत्तियों का धुंआ मछरों को भगाता रहा. मुझसे ज्यादा आक्सीजन देने की क्षमता किसी में नहीं। ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपटने में मैं सदियों से मनुष्य के साथ रही। मेरी पत्तियों को चबाकर पशु पलते रहे।  पहले लोग मुझमें शीतला माता का निवास मानकर मेरी पूजा करते थे। त्वचा रोग में मेरी पत्तियों से नहाते थे। बच्चों को मेरे आशीर्वाद के लिए मेरी पत्तियों पर लिटाया जाता था। मैं कितनी  खुश होती थी। लेकिन अब.....। नीम का गला भर्राने  लगा था। 
'अब मनुष्य बेहद क्रूर और स्वार्थी हो गया है। यह भी नहीं सोचता क़ि हम नहीं रहेंगे तो वह कहाँ रहेगा.
मुझे काट डालने पर तुला है। मेरे भाई-बंधु सब काटे जा रहे हैं।
हम तुम्हारी रक्षा कर रहे हैं और तुम हमें ही .....।
 नीम की सिसकियां उभरने लगीं थीं। मैं बेचैनी और ढेर सारे सवालों से घिरने लगा  था। 

तभी मेरी निगाह घड़ी पर पड़ी। 
मैं तुरंत वहां से चल पड़ा। 
मुझे कार्यालय पहुंचना था-
ठीक साढ़े दस बजे।

9 comments:

  1. नीम के जैसा परोपकारी कोई वृक्ष नहीं, औषधीय गुणों के इस संग्रह को और स्थान मिले धरा में।

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  2. प्रकृति के दर्द को महसूस करना ही होगा...... जो सदा कुछ देती ही है.... सुंदर पोस्ट

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  3. प्रकृति प्रेम से लबरेज आपकी यह पोस्ट ..सार्थक है ...आपका आभार

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  4. निम् जैसे परोपकारी वृक्ष को धारा में रहना ही चाहिए| धन्यवाद|

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  5. आफिस पहुँचने से पहले आपने नीम की उपयोगिता
    बता आँखें खोल दीं .....
    हर घर में नीम होना आवश्यक है ...
    मैंने भी लगा रखा है .....

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  6. सन्तोष जी!

    वर्तमान में प्रत्येक वृक्ष के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। मनुष्य को जब लगता है कि उसे अपनी सुविधाओं में वृद्धि करनी चाहिये और मार्ग में जब कोई वृक्ष उसकी चाहत के आगे आता है, तो वह उसका मूलोच्छेद करने में तनिक भी संकोच नहीं करता। वृक्ष को काटते समय उसको उसकी उपयोगिता नहीं दिखती बल्कि अपनी सुख, सुविधा का ख्याल होता है।

    नीम हमारे पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण वृक्ष है। कोई भी इसके महत्त्व से अनभिज्ञ नहीं है........फिर भी..................काटने में किसी को गुरेज नहीं है।


    आपने नीम का मानवीकरण करके एक सार्थक, प्रभावोत्पादक, विचारोत्तेजक बात कही है। वर्तमान में समाज, राष्ट्र, प्रकृति सहित सम्पूर्ण विश्व को आप जैसे प्रकृति-प्रेमी की आवश्यकता है, जो प्रकृति की संवेदना को समझ सके, जान सके तथा दूसरों तक संदेश भी भेजने में समर्थ हो। स्वयं आगे बढ़े औरों को भी बढ़ने के लिये प्रेरित करे।

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  7. नीम हमारे पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण वृक्ष है। नीम जैसे वृक्ष जिसका हर एक भाग हमारे लिए उपयोगी है, उसे तो हर घर में होना अतिआवश्यक है .. सार्थक लेख

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  8. आदरणीय सन्तोष जी!
    नमस्कार !
    आपने नीम का मानवीकरण करके विचारोत्तेजक बात कही है।
    प्रकृति के दर्द को महसूस करना ही होगा

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  9. पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

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