
तमिलनाडु का दूसरा सबसे बड़ा शहर कोवई पेयजल संकट से त्राहि-त्राहि कर रहा है। कुछ महीने पहले तक चार दिन में एक बार नलों में दिखाई देनेवाला पानी पहले सात दिन में एक बार आया और अब बारह दिन में एक बार नमूदार हो रहा है। हालात इतने भयावह हो गए हैं कि शहर के प्रमुख अस्पताल कोवई मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में कई पीडि़तों की शल्य चिकित्सा रोक देनी पड़ी, क्योंकि अस्पताल में पर्याप्त पानी नहीं था। नगर निगम ने टैंकरों से जलापूर्ति के इंतजाम का दावा किया है लेकिन प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा ही है। जलदाय विभाग करे भी तो क्या,

शहर की जीवनरेखा सिरुवानी में पानी नहीं है। स्थिति का फायदा उठाने के लिए पानी के व्यापारियों ने पेयजल के केन की कीमत बढ़ा दी है जिसकी वजह से कच्ची बस्तियों में तो बूंद-बूंद के लिए हाहाकार है। कोढ़ में खाज की तरह गर्मी दस्तक दे रही है। सतह पर तो पानी गायब हो ही रहा है, भूजल स्तर भी नीचे गिर गया है। आरएस पुरम जैसे इलाकों में भवनों में पानी नदारद होता जा रहा है और लोगों को दैनिक क्रियाओं के लिए भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। शहर में पहले सौ से अधिक झीलें थीं जो शहर के तापमान को तो नियंत्रित रखती ही थीं भूजल स्तर को भी थामे रखती थीं। इनमें से आधी अब इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं। कई जलाशय, तालाब व झीलें या तो दम तोड़ चुके हैं या फिर आखिरी सांसें गिन रहे हैं। जो झीलें बची भी हैं वे अतिक्रमण की शिकार हो रही हैं। इस वर्ष उत्तर-पूर्व मानसून के दगा दे जाने के कारण हालात बदतर हो गए। पेयजल संकट का सबसे बड़ा कारण जल संसाधनों का अति उपयोग या दुरुपयोग है। तमिलनाडु जैसे कम बारिश वाले राज्य में वर्षा जल का समुचित संरक्षण नहीं होना आश्चर्यजनक ही नहीं, चिंताजनक भी है। एक ऐसा राज्य जो पानी के लिए पड़ोसी राज्यों के सहयोग, समझौतों, प्राधिकरणों व न्यायालय के आदेशों पर निर्भर करता हो, वहां तो बूंद-बूंद पानी को सहेजने के जतन होने चाहिए थे लेकिन लगता है नीति-नियंताओं को इससे कोई लेना-देना नहीं। इन्हें तो कोई चुल्लूभर पानी दे दे तो अच्छा होगा। सरकार ने सभी जिलों को सूखा पीडि़त घोषित करके और केन्द्र सरकार से ३९,५६५ करोड़ रुपए की मांग करके अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली है। रुपए मिल जाएंगे तो सरकार किसानों को रुपए थमा देगी और अगले साल फिर ऐसे ही हालात हुए तो फिर ऐसे ही किसानों की मदद की जाएगी। इस तरह सरकार की मौजूदगी का एहसास बनाए रखा जाएगा। फिर अगले साल का इंतजार किया जाएगा। नागरिकों के भाग्य में फिर उड़ती धूल, बहता पसीना, मुरझाती फसलें और सूखते होठ लिख दिए जाएंगे। कोयम्बत्तूर में एक तो कम बरसात होती है, होती भी है तो सारा पानी बेकार बह जाता है। वर्षा जल का संग्रहण व संरक्षण करके बरसाती पानी का दोबारा उपयोग करने के समुचित इंतजाम किए बिना इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। आवश्यक है कि वर्षा का जल बचाने के लिए सरकार अपने स्तर पर भी प्रयास करे और आम लोगों को, विशेषकर भवन मालिकों को वर्षाजल संग्रहण के लिए प्रोत्साहित करे। जल संरक्षण की तकनीक ही नहीं, इसका महत्व भी आम लोगों को बताया जाए और प्रोत्साहन राशि देकर जन सहभागिता को बढ़ाने का प्रयास किया जाए। विद्यार्थियों को पर्यावरण के साथ ही जल संरक्षण के बारे में शिक्षित व जागरूक किया जाना चाहिए। तालाबों, झीलों के पुनरोध्दार का अभियान चलाकर लोगों को पानी का दुरुपयोग नहीं करने के लिए प्रेरित किया जाए। जल संरक्षण हमारी पहली चिंता होनी चाहिए, यह समय की मांग है और आनेवाली पीढिय़ों के लिए पानी बचा रहे, यह हमारी जिम्मेदारी भी है।
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