रंग जिंदगी के
जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है. जिंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है. -शहरयार.
Wednesday, September 22, 2010
तुम जो मेरे मीत बन गए
तुम जो मेरे मीत बन गए
शब्द- शब्द से कविता फूटी
अक्षर- अक्षर गीत बन गए.
तुम बिन कुछ ऐसा था जीवन
जैसे बिन चेहरे के दर्पण
जैसे धूल भरी दोपहरी
जैसे बिन बारिश के सावन.
तुम जो मिले, मिल गए सुर-लय
हम भी एक संगीत बन गए.
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