Monday, May 19, 2014

एक नए युग का सूत्रपात

चुनाव समाप्त हो गया । फोड़े की तरह दुखता  चुनाव। कांटों की तरह चुभता  चुनाव। टीवी खोलते डर लगता था। काट देने, बांट देने की बातें होती थीं। इतना भयानक, ऐसा डरावना चुनाव पहले तो नहीं देखा गया। जातियों का गणित था, मजहबों का खेल था। कोई कौम की भलाई के अलावा कुछ सोचने को तैयार नहीं था तो कोई जातिवाद की कीचड़ भरी राह पर चलने में ही अपना हित सुरक्षित मान रहा था। राजनीतिक दल वोट बैंक को सुरक्षित रखने की चालें चल रहे थे तो लोग हजार-हजार के नोट पर खुद को बदल रहे थे। आनेवाले चुनावों में क्या होगा, यह सोचकर ही सिर चकराता था। यह कैसा देश बना डाला हमने, जिसमें सब कुछ है लेकिन देश गायब है।
 

बहरहाल, कहते हैं, रात जितनी अंधेरी होती है, सुबह उतनी ही रोशन। चुनाव परिणामों ने सारी गंदगी साफ कर दी। जातियों के किले ढह गए। मजहबी राजनीति को लोगों ने दफना दिया। स्वतंत्र भारत के चुनाव में पहली बार यह साबित हुआ कि समाज को टुकड़ों में बांटकर राज करनेवाली ताकतें परास्त हो सकती हैं। तुष्टिकरण के सहारे फलने-फूलनेवाली पार्टियों का खात्मा हो गया। बंटा हुआ समाज ही इनकी जीत का कारण बनता रहा है। इस बार ऐसा नहीं हुआ। यह लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत है।
 

ईमानदारी और देशभक्ति के जज्वे के साथ खड़े हुए एक आदमी ने  लोगों में ऐसा विश्वास पैदा किया कि सोच बदल गई। लोग छुद्रताओं से ऊपर उठे और कई स्यंभू नेताजीओं का किला ढह गया। जातीय राजनीति के छोटे-मोटे जीव जंतु ही नहीं, पूरा का पूरा हाथी ही साफ हो गया। लोगों ने तो जैसे भ्रष्टाचार के राजाओं को हराने की ठान ली थी तभी तो समर्थन की शर्त पर देश का खून चूसती आई कई पार्टियां खाता भी नहीं खोल सकीं।
 

निश्चित ही यह एक नए युग का सूत्रपात है। यह एक नई आजादी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिन काराओं से देश मुक्त हुआ है अब वे फिर कभी देश को कैद नहीं कर पाएंगी। इसके लिए हमें जागरूक रहना पड़ेगा।