Saturday, November 26, 2011

बीज प्यार के बोयें हम.

आज जो ये दिन बीत रहे हैं
लम्हा- लम्हा रीत रहे हैं.
बातें हैं, मुलाकातें हैं
यह सब कल की यादें हैं.

आओ इन्हें संजोये हम
बीज प्यार के बोये हम.

फिर न वक्त हमारा होगा
कुछ भी नहीं दुबारा होगा.
हर एक पल जीभर जी लें .
जीवन मधु छककर पी लें .

समय व्यर्थ न खोएं हम
बीज प्यार के बोयें हम.

जीवन हो निरभ्र, निर्भार
जैसे खुशबू, हवा, सितार
अहंकार के कंकण-पत्थर
बोझ बने  बैठे छाती पर

और न इनको ढोएँ हम
बीज प्यार के बोयें हम.

9 comments:

  1. जीवन हो निरभ्र, निर्भार
    जैसे खुशबू, हवा, सितार
    अहंकार के कंकण-पत्थर
    बोझ बने बैठे छाती पर

    बड़ी अच्छी पंक्तियाँ है.... काश ऐसा ही कर पायें हम सब....

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  2. सब चिंताओं,कष्टों और बाधाओं से मुक्ति की छटपटाहट !

    सुन्दर भाव !

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  3. इतने सरल शब्दों में जीवन की इतनी सारगर्भित अभिव्यक्ति नहीं हो सकती है। बहुत ही उत्कृष्ट सृजन कर्म।

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  4. जीवन हो निरभ्र, निर्भार
    जैसे खुशबू, हवा, सितार
    अहंकार के कंकण-पत्थर
    बोझ बने बैठे छाती पर

    आपकी प्रस्तुति निसंदेह प्रसंसनीय है ....अनवरत लेखन के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं .....!

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  5. aaj-kal charo aur ahankaar,dwesh,aur nafrat ki
    jahrili gas ne sabke man main jahar bhar diya hain, bas pyaar ka beej boke, sneh ki sheetalta
    ka majboot aur vishaal vraksh banaye.jiske tale
    ham sab ke jeevan main khushi aur shaanti mil paaye.
    aapke bhav bahut nek aur sundar hain.

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  6. पहली दफा आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
    आपकी सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति पढकर
    बहुत आनंद और संतोष मिला.
    बहुत बहुत आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है संतोष जी.

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  7. bahut pyari rachna, saral, saras.

    shubhkamnayen

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  8. बहुत प्यारी रचना......
    जल्दी से अंकुर फूटें...
    खूब फले फूले ये प्रेम वृक्ष......

    अनु

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  9. प्रशंसनिय रचना ...

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