Saturday, July 31, 2010

एसएमएस की मोहताज

फ्रेंडशिप डे (1 अगस्त) पर लिखा गया

एसएमएस क़ी मोहताज

अच्छा, तो आज फ्रेंडशिप डे है। चलो, एसएमएस कर देते हैं। मोबाइल में पहले से पड़ा एसएमए फारवर्ड किया और दोस्त होने का फर्ज निभा दिया। या फिर ज्यादा से ज्यादा कॉल ही कर ली। ठीक है, यार फिर बात करते हैं, है ना। ओके. बाई। महानगरीय जीवनशैली, कामकाज का तनाव, ज्यादा से ज्यादा सुख-सुविधाएं बटोरने की महत्वाकाक्ष के बीच दोस्ती जैसे एहसास ·के लिए समय ही कहां है? जहां खून के रिश्तों में भी मधुरता बीते जमाने की बात हो रही हो वहां दोस्ती कौन करे, किससे करे । जुड़ाव के लिए चाहिए विश्वास और हम दिन-रात जो कुछ देख रहे हैं, कर रहे हैं, उसमें हम जानते हैं ·क़ि सब कुछ किया जा सकता है, विश्वास को छोड़कर. विश्वास हमारे भीतर क़ी ऐसी जमीन है जो लगातार दरक रही है। हम स्वयं इतने डरे हुए हैं, क़ि सतर्कता से जीने के आदी हो गए हैं। झूठ का पूरा साम्राज्य हमारे इर्द-गिर्द पलने लगा है। चेहरे पर बनावट, मुसकान भी मतलब भर क़ी, नपी-तुली, प्रोफेशनल। ऐसे में दोस्ती सच्ची कैसे होगी? फिर दोस्त चाहिए भी क्यों? बटन दबाते ही इंटरनेट उपलब्ध है। दोस्तों का अम्बार लगा है। देसी-विदेशी, मेल-फीमेल, मनचाहा, और सब ·कुछ बतियाने का मौका भी। ऐसे में ·किसी जीते-जागते दोस्त के लिए स्थान कहां है? कहीं दूर बैठा, ख्वाबों-खयालों में खोया दोस्त बेहतर है। जब चाहो उसक़ी जुबान बंद क़ी जा सकती है, या फिर उसे बदला जा सकता है। उसे भी अपने से कोई उम्मीद नहीं। दोनों तरफ से टाइमपास। दोनों एक दूसरे का इस्तेमाल ·रते हैं, ·कुड़ेदान ·क़ी तरह। यह सुविधा किसी जीते-जागते दोस्त के साथ नहीं।

ऐसे में इस बात पर कौन विश्वास करेगा कि पहले लोग पालतू जानवरों से भी दोस्तों जैसा प्यार करते थे। अब अपनों के साथ भी जानवरों जैसा बर्ताव होने लगा है।

हम दोस्ती, एहसान-ओ-वफा भूल गए हैं। जिन्दा तो हैं, जीने ·क़ी अदा भूल गए हैं।

किसी शायर ·क़ी नजर में दोस्ती और वफा भले ही जीने ·क़ी अदा हो, बदलते वक्त में दोस्ती के लिए एक खास दिन तय है और वह एसएमएस क़ी मोहताज है।