Sunday, June 1, 2014

उत्तम प्रदेश बनता उत्तर प्रदेश

लगता है सपा सरकार उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाकर ही दम लेगी। प्रदेश में बलात्कार के मामलों में जिस तरह से वृद्धि हो रही है, उससे तो यही लगता है कि सरकार एक खास वर्ग के लिए प्रदेश को उत्तम बना ही देगी। कुछ समय पहले सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह ने 'लड़के हैं, गलती हो जाती हैÓ कहकर जो जमीन तैयार की थी, अब उसमें फसल लहलहाने लगी है। सरकार ने सूबे में इतना अनुकूल माहौल बना दिया है कि बलात्कार की घटनाओं की संख्या प्रतिदिन दस तक पहुंच गई है। इस मामले को लेकर प्रदेश के डीजीपी का हालिया बयान गौरतलब है। उन्होंने प्रदेश की जनसंख्या के लिहाज से इसे बेहद कम माना है। ऐसे में संभावना तो यही है कि माननीय मुलायम सिंह जी भी इससे खुश नहीं होंगे।
लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद मुख्यमंत्री ने कहा था कि सरकार के विकास कार्यों का समुचित प्रचार नहीं हो पाया। कहीं इस मामले में भी तो ऐसा ही नहीं हैं। सरकार ने जो अनुकूल माहौल बनाया है उसका लाभ लेने के लिए लोग इतनी कम संख्या में क्यों आगे आ रहे हैं। सूबे में बलात्कार के मामलों की संख्या का मुश्किल से दो अंकों में पहुंचना यह साबित करता है कि अभी भी लोगों में झिझक है। लगता है, अभी भी कुछ लोग कानून-व्यवस्था जैसी किसी चीज की मौजूदगी मान रहे हैं। जबकि बलात्कार के मामलों को लेकर सरकार का रवैया बिल्कुल स्पष्ट है। मुख्यमंत्री जी से एक महिला पत्रकार ने जब महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि आप तो सुरक्षित हैं न। मतलब यह कि जब तक एक भी महिला सुरक्षित है, सरकार नहीं मानेगी कि बलात्कार हो रहे हैं।
बलात्कार के मामलों में वृद्धि के लिए सरकार सिर्फ नागरिकों के उत्साह पर ही निर्भर नहीं है। पुलिसकर्मी भी इसमें सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं और भरपूर योगदान कर रहे हैं। बदायूं वाले मामले को ही देखिए, पांच आरोपियों में से दो पुलिसकर्मी हैं। फिर लोगों को किसका और कैसा भय है। इस तरह की घटनाओं से पुलिस की एक अलग पहचान बन रही है। सही भी है, पुलिसकर्मियों को यदि नाम कमाने का मौका मिलेगा तो वे पीछे क्यों रहेंगे। कानपुर में एक दारोगा ने भी कोशिश की लेकिन नागरिकों ने पिटाई करके उसके उत्साह पर पानी फेर दिया।
मालूम हो कि अभी पिछले साल ही सपा के एक विधायक महेन्द्र सिंह को गोवा में रंगरलियां मनाते हुए गिरफ्तार किया गया था। हो सकता है, इसके बाद राज्य सरकार को लगा हो कि प्रदेश में ही बेहतर माहौल बनाया जाना चाहिए। सरकार इसमें कामयाब हो रही है, इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए।

Monday, May 19, 2014

एक नए युग का सूत्रपात

चुनाव समाप्त हो गया । फोड़े की तरह दुखता  चुनाव। कांटों की तरह चुभता  चुनाव। टीवी खोलते डर लगता था। काट देने, बांट देने की बातें होती थीं। इतना भयानक, ऐसा डरावना चुनाव पहले तो नहीं देखा गया। जातियों का गणित था, मजहबों का खेल था। कोई कौम की भलाई के अलावा कुछ सोचने को तैयार नहीं था तो कोई जातिवाद की कीचड़ भरी राह पर चलने में ही अपना हित सुरक्षित मान रहा था। राजनीतिक दल वोट बैंक को सुरक्षित रखने की चालें चल रहे थे तो लोग हजार-हजार के नोट पर खुद को बदल रहे थे। आनेवाले चुनावों में क्या होगा, यह सोचकर ही सिर चकराता था। यह कैसा देश बना डाला हमने, जिसमें सब कुछ है लेकिन देश गायब है।
 

बहरहाल, कहते हैं, रात जितनी अंधेरी होती है, सुबह उतनी ही रोशन। चुनाव परिणामों ने सारी गंदगी साफ कर दी। जातियों के किले ढह गए। मजहबी राजनीति को लोगों ने दफना दिया। स्वतंत्र भारत के चुनाव में पहली बार यह साबित हुआ कि समाज को टुकड़ों में बांटकर राज करनेवाली ताकतें परास्त हो सकती हैं। तुष्टिकरण के सहारे फलने-फूलनेवाली पार्टियों का खात्मा हो गया। बंटा हुआ समाज ही इनकी जीत का कारण बनता रहा है। इस बार ऐसा नहीं हुआ। यह लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत है।
 

ईमानदारी और देशभक्ति के जज्वे के साथ खड़े हुए एक आदमी ने  लोगों में ऐसा विश्वास पैदा किया कि सोच बदल गई। लोग छुद्रताओं से ऊपर उठे और कई स्यंभू नेताजीओं का किला ढह गया। जातीय राजनीति के छोटे-मोटे जीव जंतु ही नहीं, पूरा का पूरा हाथी ही साफ हो गया। लोगों ने तो जैसे भ्रष्टाचार के राजाओं को हराने की ठान ली थी तभी तो समर्थन की शर्त पर देश का खून चूसती आई कई पार्टियां खाता भी नहीं खोल सकीं।
 

निश्चित ही यह एक नए युग का सूत्रपात है। यह एक नई आजादी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिन काराओं से देश मुक्त हुआ है अब वे फिर कभी देश को कैद नहीं कर पाएंगी। इसके लिए हमें जागरूक रहना पड़ेगा।    

Tuesday, February 4, 2014

ज्यों भैंसों के दिन फिरे

पुरानी कहावत है कि साल में एक बार घूरे के दिन भी फिरते हैं। उत्तर प्रदेश में इन दिनों भैंसों के दिन फिरे हुए हैं। चर्चा में हैं। तस्वीरें छप रही हैं, वीडियो दिखाए जा रहे हैं। भला हो मंत्री आजम खान साहब का, उन्होंने भैंसों को खबरों में ला दिया है। वैसे खबरों में वे स्वयं रहते हैं लेकिन इस बार उन्होंने भैंसों को आगे कर दिया है। आम तौर पर भैंस की  उपेक्षा ही होती है। लोग दूध उसी का लेते हैं लेकिन गाय के दूध को बेहतर बताते हैं। कम दूध देने के बावजूद लोग गाय को मां कहते हैं जबकि ज्यादा दूध देने के बावजूद भैंस उपेक्षित है, शोषित है। भैंस को बदशक्ल और बेवकूफ का पर्याय बना दिया गया है। यही नहीं, 'अक्ल बड़ी या भैंसÓ कहकर भैंस का मजाक भी उड़ाया जाता है। भैंसों के साथ भेदभाव का आलम यह है कि उनका पानी में जाना भी किसी को अच्छा नहीं लगता। काम बिगडऩे पर 'गई भैंस पानी मेंÓ जैसे मुहावरे इस्तेमाल किए जाते हैं।
 

बहरहाल, कल तक घोर उपेक्षा की शिकार भैंसों को उत्तर प्रदेश में पूरा सम्मान मिला और वह भी सार्वजनिक रूप से। यही नहीं, इन भैंसों की वजह से यूपीपी को भी अपना खोया गौरव हासिल करने का मौका मिला। पुलिस ने जिस तत्पररता व कर्तव्यपरायणता के साथ भैंसों को ढूढ़ निकाला उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। भैंसों को ढूढऩा आसान नहीं होता। क्योंकि सारी भैंसे एक जैसी होती हैं। ऐसे में मंत्रीजी की भैंस कौन सी है, यह पहचान कर पाना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर रही होगी लेकिन साहब यह उत्तर प्रदेश की पुलिस है, हिम्मत नहीं हारी और भैंस को ढूढ़ निकाला। बताते हैं कि एसपी रैंक तक के अधिकारियों ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और यह साबित कर दिया कि कानून के हाथ लम्बे होते हैं। भैंसों के गायब होने से नाराज मंत्रीजी ने कुछ पुलिस वालों को लाइन हाजिर कर दिया। अब भैंसों के मिल जाने से जरूर उन्हें खुशी हुई होगी। अभियान दल के पुलिसकर्मियों को अगले साल पुलिस पदक मिल जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 
 

जो भी हो, इस घटना से भैंसों का सम्मान जरूर बढ़ गया। उत्तर प्रदेश में जो समाजवाद आया है, उसका लाभ भैंसों तक पहुंच गया है। भैंसें गदगद हैं। इस वक्त अगर भैंसों से पूछा जाए तो उनकी दिली तमन्ना यही होगी कि केन्द्र में अगली सरकार सपा की बने। देखना है,सरकार अपनी इस अनूठी उपलब्धि को मतों में बदल पाती है या नहीं। जैसे भैंसों के दिन फिरे, भगवान करें ऐसे ही सबके दिन फिरें।

Friday, January 10, 2014

सैफई, विकास और सुख की तलाश

कहते हैं, सुख  मनुष्य की शाश्वत खोज है। सुख की खोज ही मनुष्य के विकास का आधार बनी। सुख की खोज में ही उसने मंदिरों का निर्माण किया, संगीत सीखा, गिरि-कंदराओं में ध्यान लगाया, दुनिया जहान की सैर की। बम वर्षक विमानों से लेकर वियाग्रा तक मनुष्य ने जो कुछ बनाया, उसका कारण यही था कि वह निरंतर सुख की तलाश में था। विशेषकर, हमारे देश में सुख की तलाश सदियों से तीव्र गति से हो रही है। यह तलाश रुक गई होती तो दुनियाभर के क्रिकेटरों से लेकर सन्नी लियोन जैसी अभिनेत्रियों तक को रोजगार की तलाश में यहां आने की जरूरत नहीं पड़ती और हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहते।

हमारे देश के विधायक
सुख की तलाश में विदेश गए तो कुछ लोगों के पेट में पता नहीं क्यों, मरोड़ उठ रही है। यह घोर ईष्र्या है। दूसरों की खुशी से पैदा हुई जलन है। आप भी जाइए, किसने रोका है। आदमी अपनी औकात के हिसाब सुख खोजता है। आम लोग देश में ही सुख खोजने के लिए विवश हैं। विधायकों को भी देश में ही सुख खोजना पड़े तो विधायक बनना ही व्यर्थ है। करोड़ों के खर्च के बाद तो आदमी, आदमी से विधायक बनता है। और फिर अब देश में सुख का माहौल ही नहीं रह गया है। बेचारे झांसाराम को लोगों ने गिरफ्तार करवा दिया। कहा जाता है कि कुटिया बना रखी थी जहां खुद भी खुशी  पा रहे थे और दूसरों को भी दिला रहे थे, लेकिन देश की पुलिस को क्या कहें, डंडा लेकर पीछे पड़ गई। गोवा में सपा के एक विधायक के साथ भी यही अपमानजनक व्यवहार हुआ। कुल मिलाकर तीन युवतियों के साथ पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। यह घोर सुख विरोधी माहौल है। आप ही बताइए, सत्ता पाकर भी यदि आदमी सुख नहीं भोगेगा तो सत्ता पाने का फायदा क्या हुआ।

यही वजह है कि अब देश में
सुख खोजने से विधायकों का मोहभंग हो चुका है। वे यहां रिस्क नहीं ले रहे हैं और विदेशों का रुख कर रहे हैं। वैसे भी बताया जाता है कि वहां ज्यादा बेहतर इंतजाम हैं। इतने तरह के मसाज आदि होते हैं कि आदमी को पैदा होने पर गर्व होने लगता है। अपने यहां हजार तरह की झंझट है। कर्नाटक में पहले विधायकों ने विधानसभा सत्र के दौरान मोबाइल पर सुख खोजने की कोशिश की थी, लेकिन कहा जाता है सुख तो ठीक से मिला  नहीं, उलटे लोगों ने हंगामा कर दिया। इसलिए इस बार विधायकों को मजबूर होकर विदेश का रुख करना पड़ा।सुख की ही तलाश में उत्तर प्रदेश के विधायक इन दिनों विदेश में हैं। यहाँ करोड़ों खर्च करके प्रदेश के विकास के लिए दो तरफा इंतजाम किए गए। या तो विदेश जाओ या सैफई। जो जवान हैं, ज्यादा शौकीन हैं और जिन्हें दौर पर दौर की जरूरत पड़ती है,वे दौरे पर हैं बाकी जो उम्रदराज हैं, उनके लिए सैफई महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें माधुरी दीक्षित से लेकर नवोदित तारिकाओं ने ऐसे लटके-झटके दिखाए कि लोगों को सर्दी में गर्मी का एहसास हो गया। गर्मी भी ऐसी पैदा हुई कि बताया जाता है कि मुख्यमंत्री अब खुद माधुरी के साथ पिक्चर देखने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। यहीं नहीं, उन्होंने माधुरी की फिल्म को करोड़ों की छूट भी दे दी। जो खुश होता है वही दूसरों को खुशी दे सकता है। मुख्यमंत्री खुश हैं और चाहते हैं कि माधुरी भी खुश हो जाए। मुख्यमंत्री से लेकर, मुख्यमंत्री को मुख्यमंत्री बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री तक, छोटे-मोटे नेता से लेकर आला अफसर तक सभी ने भरपूर लुत्फ उठाया और मन ही मन जनता जनार्दन को धन्यवाद दिया जिन्होंने वोट देकर यह सुनहरा अवसर दिया।

सुख की खोज को सकारात्मक नजरिये से देखे जाने की जरूरत है।यह खोज वस्तुत: विकास के नए दरवाजे खोलेगी। आखिर जब मंत्री, विधायक खुद खुश नहीं होंगे तो दूसरों की खुशी के बारे में कैसे सोचेंगे। हताश, निराश और कुंठित लोग दूसरों का भला नहीं सोच सकते। वैसे भी यह कोई आम आदमी नहीं, नेता लोग हैं जिनके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोडऩे के बजाय नेता लोग विदेशों की ओर मुंह कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है।
 

 कुछ विघ्न संतोषी लोग मुजफ्फरनगर जैसी बेमजा घटनाओं का जिक्र करके रंग में भंग डालने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सरकार जानती है कि इस देश में जहां लगभग डेढ़ अरब लोग जिंदा हैं वहां 25- 50 लोगों की मौत कौन याद रखेगा। इससे भी ज्यादा भरोसा उसे इस जाति और उस मजहब के लोगों से है जो बरसों से उनके लिए सुख खोजने का पुख्ता इंतजाम करते रहे हैं। 

जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है, वह निरंतर विकास कर रहा है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बाद यदि कहीं कोई नेताजी पैदा हुए तो सिर्फ उत्तर प्रदेश में। अब आनंद के इस दौरे के बाद निश्चित ही विकास की गति तेज होगी। विदेश के दौरे से लौटने के बाद नेता देश को निराश नहीं करेंगे। खबरों पर नजर रखिए। जल्दी ही विकास की कुछ घटनाएं सुर्खियों में होंगी।

Wednesday, January 1, 2014

नया साल मंगलमय हो

नया साल मंगलमय हो
तन हो स्वस्थ, मन प्रसन्न हो।
घर में भरा धान हो, धन हो।

गूंजे गीत सदा खुशियों के
गीतों में नव सुर, नव लय हो।
नया साल मंगलमय हो।

मेहनत, हंसी, उमंग और आशा।
यही हो जीवन की परिभाषा।
दुर्गम राहों से न डरें हम
मुश्किलों पर सदा विजय हो।
नया साल मंगलमय हो।