Thursday, February 3, 2011

आओ, कुछ पल बैठो साथ!

आओ, कुछ पल बैठो साथ!
कह लें, सुन लें, मन की बात!!
 

गया वक़्त फिर हाथ न आये!
जाये चला ना खाली हाथ!!
 

तुम आये कुछ ऐसे, जैसे !
जेठ के बाद हुई बरसात !!
 

तुम क्या जानो, कितना मुश्किल!
साथ में तुम, वश में जज्बात!!
 

साथी, बहुत कसक देते हैं!
साथ अधूरा, आधी बात !!
 

भूत, भविष्य की ज्ञानी जानें 
वर्तमान है, अपने हाथ!!

10 comments:

  1. unka saath ho aur jazbaat kaboo me ho, aisa saamya bithana sabke boote ki baat nahin !

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  2. बहुत सुन्दर और सरल वक्तव्य, जीवन का।

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  3. भूत, भविष्य की ज्ञानी जानें
    वर्तमान है, अपने हाथ!!

    जीवन का सार समेटे पंक्तियाँ .... बहुत सुंदर रचना

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  4. shabdon ka itna achha upyog prashanshniy hai.ishwar se kamna karta hu aapki kalam me aur aise hi achhe moti kagaz par sakar karne ki shakti den.

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  5. प्रियतम-प्यारे गर पास हों हमारे,
    मुंह बंद होता है,होंठ करते इशारे !

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  6. भूत, भविष्य की ज्ञानी जानें
    वर्तमान है, अपने हाथ!!
    बहुत सुंदर रचना |

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  7. @ संतोष त्रिवेदी
    क्या गजब की टिपण्णी की है.एक शेर याद याद आ गया-
    लबों से लब जो मिल गए, लबों से लब ही सिल गए.
    सवाल ग़ुम, जवाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी.

    @ डॉ मोनिका
    महोदया, टिपण्णी के लिए आभार.

    @ प्रवीण जी, रमेश जी, patali-the-village जी
    आप सभी का टिपण्णी के लिए आभार.सिलसिला बनाये रखने के अनुरोध के साथ.

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  8. "सच में" आपके आगमन और विचार व्यक्ति के लिये धन्यवाद!

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  9. तुम आये कुछ ऐसे, जैसे !
    जेठ के बाद हुई बरसात !!
    वाह! संतोष जी, प्यार के अहसास का इतना सुन्दर शब्द चित्र और वो भी इतनी सहजता से !
    आपकी लेखनी को नमन !

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  10. आदरणीय संतोष पांडेय जी
    नमस्कार !

    बहुत प्यारी रचना है…
    तुम आये कुछ ऐसे, जैसे
    जेठ के बाद हुई बरसात

    वाह वाऽऽह ! बहुत ख़ूब !

    भूत, भविष्य की ज्ञानी जानें
    वर्तमान है, अपने हाथ!!

    इतना जानना भी कम ज्ञान की बात नहीं …
    अच्छा लगा आपके यहां आ'कर

    बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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