Thursday, June 9, 2011

हम कहाँ जा रहे हैं

झुण्ड से बिछड़े दो हाथियों ने 8 जून को मैसूर में एक आदमी को रौंद कर मारा डाला और चार लोगों को घायल कर दिया. गुस्साए हाथियों ने पालतू पशुओं पर भी हमला किया और खूंटे से बंधी एक गाय को मार डाला.इस  दौरान शहर के विभिन्न इलाकों में घन्टों भगदड मची रही. घंटों की मशक्कत के बाद बेहोशी का इंजेक्शन देकर हाथियों पर काबू पाया जा सका.
प्रत्यक्षदर्शियों और वन विभाग के आधिकारियों के अनुसार रास्ता भटककर शहर आ गए हाथी बदहवासी में इधर-उधर भाग रहे थे और बाहर निकलने का रास्ता तलाश कर रहे थे. सोच रहे होंगे कि यह कहाँ आ गए हम जहाँ बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं है. कंक्रीट के जंगल में उन्हें रास्ता नहीं मिला तो आपा खो बैठे.
यह महज एक खबर नहीं. यह कोई नई बात भी नहीं.आहार की तलाश में जंगली जानवरों का रिहायशी इलाकों में घुस आना और पशुओं तथा इंसानों पर हमला करना अब आम बात है. इस पर हमें परेशान क्यों होना चाहिए.आखिर यही सब तो हम करते रहे हैं, आदिकाल से. सभ्यता  के तमाम दावों के बावजूद न तो भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक हुआ और न ही ख़ाल खींच लेने की आदिम हिंसा से ऊपर उठ पाए.
 घटते  वन क्षेत्र और वहां भी आदमी की बढती दखलंदाज़ी से जंगली जानवरों का जीना मुश्किल हो गया है. लेकिन चूँकि अभिव्यक्ति के माध्यमों और मीडिया तक जंगल में रह रहे जानवरों क़ी पहुँच नहीं है, लिहाजा वहां मनुष्य के आतंक क़ी बहुत ज्यादा ख़बरें नहीं आ पातीं. मेरे अपने गाँव से गोरैया विदा हो चुकी है, अटरिया पे कागा अब नहीं बोलता और मरे जानवरों क़ी सफाई करनेवाले गिध्द भी अब गायब हैं. हमने ऐसे कीटनाशकों का प्रयोग किया कि चिड़िया बेमौत मारी गई, जानवरों को ऐसे इंजेक्शन दिए कि साफ करनेवाले गिध्द खुद साफ़ हो गए.

  • बढ़ती आबादी और विकास की आवश्यकताओं की पूर्ति की खातिर जंगलों के सफाये से जैव विविधता को भंयकर खतरा उत्पन्न हो गया है। जानवरों, जीव जंतुओं का अस्तित्व खतरे में है। यही कारण है कि जंगल में भगदड़ मची हुई है और आदमी और जंगली जानवरों के बीच टकराव बढ़ रहा है.यह तो तय है कि जानवर अब हमें नहीं मिटा सकते लेकिन यह भी सच है कि जानवरों को मिटाकर हम खुद को नहीं बचा सकते. दूसरों के अस्तित्व को मिटाकर खुद के बचे और बने रहने का भ्रम कब टूटेगा? रिहायशी इलाकों में पहुंचकर जानवरों को  जरुर अपनी गलती का एहसास होता है और वे सोचते हैं कि कहाँ आ गए लेकिन हम यह कब सोचेगे कि हम कहाँ जा रहे हैं.जब फिर कोई जानवर शहर में घुसकर उत्पात मचाएगा? वैसे  भी, उत्पात के लिए अब हम जानवरों पर निर्भर नहीं.