Sunday, April 18, 2010

हम दायित्व निभाएंगे

नहीं , चिंतित होने की कोई बात नहीं
इन्टरनेट
बच्चों की किताबों
खिलौने की दुकानों में
अब भी नजर आते हैं ढेर सारे पशु-पक्षी
हम इन्हें दिखाएंगे बच्चों को
और बताएंगे कि
ऐसे होते थे चीता और बाघ
यूं होती थी गोरेया
और वह
जो काले रंग का है, उसे कौवा कहा जाता था
और यह भी कि जब वह छत की मुंडेर पर बोलता था
तो लोग शगुन मानते थे
रिंगटोन से निकलती कू-कू सुनाएंगे बच्चों को
और बताएंगे कि कुछ इसी तरह कूकती थी कोयल
माल से पानी की बोतल खरीदकर लौटते समय बताएंगे
कि रस्सी से बाल्टी बांधकर कुएं में डालनेभर से
मिल जाता था शुद्ध-शीतल पानी
हम बच्चों को बताएंगे
जरूर बताएंगे
और इस तरह आनेवाली पीढ़ी के लिए अपना दायित्व निभाएंगे।

4 comments:

  1. सुंदर पोस्ट

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  2. बहुत अच्छे विचार हैं...

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  3. bahut khub

    acha socha he aap ne


    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  4. बहुत ही सटीक व्यंग्यपूर्ण कविता लिखी है. पढके मजा आ गया. पर चैतन्यता कितनी आई कह नहीं सकता !!

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