तो हम नहीं होते
दुनिया के बदलाव व विकास में उसकी सबसे बड़ी भूमिका है। यह अलग बात है कि आज भी उसकी दुनिया में सब कुछ पहले जैसा ही है। सूरज की पहली किरण के आने से पहले ही जाग जाती है। सास-ससुर को चाय की प्याली समय पर मिल जाए, स्कूल जाते बच्चों, काम पर जाते पति को नाश्ता, टिफिन समय पर तैयार हो जाए। सभी के कपड़े धुले हों, बटन सही-सलामत हों। बहु जरा सुनना तो, अजी सुनती हो, मम्मी मेरे मोजे कहां हैं, जैसी आवाजों के बीच वह चकरघिन्नी की तरह इधर से उधर दौड़ती रहती है। इसी बीच घर का आंगन भी साफ-सफाई के लिए बुला लेता है। यह तो दिन की शुरूआतभर है। देर रात तक विभिन्न भूमिकाओं के बीच संतुलन साधने की कोशिश चलती रहती है। सास की थकान मिटाने की चिंता और अंत में पति की खुशी। इन सारी व्यस्तताओं, जिम्मेदारियों के बीच चेहरे पर सजी रहती है मुस्कान। पलक झपकते ही हाजिर होती है वह, सभी की फरमाइशें पूरी करती हुई। सभी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए। सभी के सपनों को पूरा करते हुए उसका अपना कोई सपना नहीं रह जाता। दूसरों के सपनों से जोड़ लेती है आंखें।गांव में जाड़े की सुबह, जब सभी रजाई में दुबके रहते हैं, वह नहाकर आंगन की तुलसी के सामने प्राथॆना करती नजर आती है। चूल्हे पर खदबदाते भात की आवाज पर कान धरे, दूध की उबाल को संभालने का जिम्मा लिए। उठ चुके बच्चे के मुंह में टपका देती है अमृत की बूंद। शहर में बेशक वह बदली भूमिका में दिखाई देती है लेकिन वह पहले से ज्यादा चुनौतीपूणॆ है। शरीर पर चुभती नजरों के चक्रव्यूह से नहीं निकल पाती वह। बस में टकरा ही जाता है कोई। कायॆस्थल पर निकटता पाने व बढ़ाने की कोशिश में लगे लोग। कौन है वह, मरुस्थल में उद्यान सी। धूप में छाया सी। आंगन में तुलसी सी। कानों में लोरी सी, आंखों में हरियाली सी, कविता सी, गजल सी, सर्दी में आग सी, गर्मी में जल सी। गोद में सितार सी, होठ पे बांसुरी सी। कौन है वह? गौर से देखिए, दिखाई देगी। वह दया है, क्षमा है, करुणा है, मैत्री है, विश्वास है, सृजन है, शक्ति है आस है, उम्मीद है, उजास है विश्वास है। उसी ने हमें अपनी कोख में पाला है, सजाया है, संवारा है, दुलारा है, संभाला है। दुनिया में जो कुछ भी सुंदर है, उसी की देन है। वह हमारी जमीन है, आकाश भी। उसी से मिले हैं संस्कार मनुष्य होने व बने रहने के। वह नहीं होती तो हम नहीं होते।
सब वही है!!!
ReplyDeletekya baat hai
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