Sunday, July 26, 2009

शुरू में कुछ भी पता न था। ऐसा कोई इरादा भी न था। बस फ़ोन पर कुछ बातें हुई थी। बात करते हुए अक्सर वह हिचकिचाती थी। सवाल का सीधा- साफ़ जवाब देने के बजाय मेरे ही सवाल को दुहराती थी। बाद में खुलती चली गई और इतना खुली कि .......
इसमे दो राय नही कि वह बेहद मासूम थी। जब भी मिलती शरमाई हुई, घबराई सी। खूबसूरत तो खैर वह थी ही, मासूमियत कि वजह से उसकी खूबसूरती और भी बढ़ जाती थी। बहुत मुश्किल, लगभग नामुमकिन था, यह जान पाना कि आखिर वह चाहती क्या है? मुंह से सीधे बोलना जैसे उसे आता ही नहीं था।
पहली बार जब उसने कनखियों से देखा तो ऐसा लगा कि रेगिस्तान में अचानक बरसात हो गई.मन भीगी रेत की तरह फिसलने लगा.जो एहसास कविताओं, कहानियों में पढ़ा था, उससे रू-ब-रू हो रहा था। दुनिया ज्यादा खूबसूरत हो गई थी और जिंदगी बेहद प्यारी। जाने कितने गीत होठों पर मचल रहे थे। यह कैसा उल्लास था, यह कौन सा रंग था......

4 comments:

  1. Oh..! Aage padh ne kee khwahish hai..!

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  2. aur bhi rang dekhna hai ,swagat hai aapka is blog jagat me .

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  3. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  4. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
    लिखते रहिये
    चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
    गार्गी

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