Tuesday, September 20, 2011

हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है

इन दिनों पूरे देश में हिंदी को लेकर जबरदस्त उत्साह है. अख़बार हिंदी के गुणगान और महत्व से भरे पड़े हैं. हिंदी के महत्व और उपयोगिता पर प्रकाश डाला जा रहा है. लाखों का बजट है.  कार्यालयों में हिंदी समारोहों की धूम है. अतिथि बुलाये जा रहे हैं, लिफाफे थमाए जा रहे हैं. स्वागत हो रहा है. भाषणों का दौर है.फूल मालाएं हैं,  तालियाँ हैं. गर्दने उचक रही हैं, कैमरे चमक रहे है. कबीर प्रासंगिक हो गए हैं, तुलसी भी याद किये जा रहे हैं. हिंदी उत्सव की धारा बह रही है, लोग हाथ धो रहे हैं और अघा जाने के बाद मुंह भी. हर कोई गदगद है. मंत्री से लेकर संतरी तक, कौन है जो खुश नहीं है. हिंदी की झोली में सभी के लिए उसकी हैसियत के हिसाब से खुशियाँ हैं. बड़े अफसर लाखों कूट रहे हैं, छोटे- मोटे अधिकारी थोड़े-बहुत में ही मुंह चौड़ा कर रहे हैं. हिंदी नए-नए रूप धारण कर घर पहुँच रही है, चेहरे की लालिमा बढ़ा रही है. हिंदी पिज्जा बन रही है, गहनों व साड़ियों के रूप में ढल रही है. शाम को हिंदी छलकने और खनकने लगती है. हिंदी शुरूर बनकर छा जाती है. हिंदी की जयजयकार है. हिंदी की कृपा से सभी लोग खुश हैं. हिंदी से जुड़े लोग व्यस्त है. रोज कहीं न कहीं अतिथि बन रहे हैं. जो नहीं बने हैं, जुगाड़ में लगे हैं. भाषणों में हिंदी के प्रति लगाव देखते और सुनते ही बनता है. गजब का जोश है ऐसा लगता है कि हिंदी का किसी भी वक्त कल्याण हो सकता है. आश्चर्य है, इसके बावजूद कुछ लोग कहते हैं कि हिंदी का समुचित प्रचार-प्रसार नहीं हो रहा. जा क़ी रही भावना जैसी हिंदी को तिन देखि तैसी. कुछ घोर निराशवादी लोग कह रहे हैं कि हिंदी के आयोजनों में नया कुछ भी नहीं है, यह तो हर साल होता है. दरअसल, हिंदी को लेकर सशंकित वही हैं, जिन्हें कहीं बुलाया नहीं जा रहा है. ढेर सरे लोग ऐसे हैं जो पहले हिंदी की दशा-दुर्दशा पर विगलित हो जाते थे, लेकिन जब पूछ होने लगी, तो उन्हें हिंदी के भविष्य की चिंताए निर्मूल  लगने लगीं. हिंदी के मंच पर सम्मान आदि मिलते ही आशंकाए वैसे ही उड़ गयीं जैसे सूरज के निकलते ही कुहासा गायब हो जाता है.
आखिर जिसके लिए करोड़ों खर्च हो रहे हो उसकी दशा ठीक न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? कायदे से तो हिंदी को इतना बड़ा बजट देखकर ही किसी रूपगर्विता की भांति इतराना चाहिए और खुश हो जाना चाहिए. आखिर अब और क्या और क्यों चाहिए? कवियों ने भारत माँ के माथे की बिंदी तक कह दिया.  अमरीका जैसे देशों में हिंदी सम्मलेन होने लगे. नयी पीढ़ी भी हिंदी को आवर नेशनल लान्ग्वेज मानती ही है. फिर भी लोगबाग हिंदी के भविष्य को लेकर खामखाह चिंतित हो रहे हैं. जगह-जगह चल रहे हिंदी समारोहों को गौर से देखिये, हिंदी का भविष्य उज्ज्वल नजर आने लगेगा.

10 comments:

  1. ये कौन सी भाषा है संतोष जी? ये है हिंदी का भविष्य ?

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  2. दर-असल आज हिंदी को पढ़ा नहीं चबाया और दबाया जा रहा है ! इसके नाम पर सप्ताह और पखवाड़े आयोजित किये जाते हैं और उसमें लाखों रूपये चबाये जाते हैं.यह विडम्बना है कि हम किसी विदेशी भाषा को बढ़ाने के नाम पर दिवस या सप्ताह आयोजित न करके अपनी ही भाषा का एकदिनी उत्सव मना रहे हैं !

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  3. सच कहा आपने, देश की विडम्बना ही होगी यदि पीढ़ियाँ हिन्दी संरक्षित नहीं रख पायेंगी।

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  4. दरअसल जब मैंने कल आपका ब्लॉग देखा था तो देवनागरी की जगह कुछ और ही भाषा थी. अक्षर अंग्रेजी के और बीच में चिन्ह. जैसे की कई बार मोबाइलया कंप्यूटर के स्क्रीन पर आ जाता है. और मै दंग रह गया... खैर ! आज पढ़ रहा हूँ.

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  5. सबकी पोल खोल रहें हैं आप , जबरदस्त व्यंग्य के साथ साथ आपकी चिंता भी जायज है

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  6. sahi hai ,bhavishya ujjwal nahi dikhta sirf dikhae jane ki koshish ho rahi hai....fir bhi ummid par duniya kayam hai....accha vyang

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  7. आज - कल हिंदी की महत्ता बढ़ ही रही है ! सुन्दर

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  8. achha vyang hai.....bahut paisa kharch kar rahe hai dikhave mein aur angreji mein bhashan se dete hain ..''hindi should be our national language and we are doing our best for its promotion and that is why we are all here to promote HINDI....''

    sach hai badi dayneey hai aaj ki hindi kehne ko uttar bharat mein prachlit bhasha hai par aaj ke uttar bharat ke vidyarthi ''fail'' hi Hindi mein hote hain....

    shubhkamnayen

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  9. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि
    खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
    स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध
    लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में
    पंचम का प्रयोग भी किया है,
    जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत
    वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती
    है...
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    कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
    पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया
    है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
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    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया
    है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
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