Thursday, October 10, 2013

वाह रे! झांसाराम

लोगों को कल्याण व मुक्ति की राह दिखाने के नाम पर बाप-बेटे किशोरियों से बलात्कार करते रहे और लोग उनके समक्ष नतमस्तक होते रहे। जय राम जी की।

आज भी किन्हीं मंघाराम जी का फोन आता है। बेहद गुस्से में हैं। कहते हैं बापू के बारे में ऐसी खबरें मत छापिए। यह झूठ है, उन्हें बदनाम करने की साजिश है। मंघाराम जी आस्था से भरे हुए हैं। ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं लगते। धर्म व अध्यात्म के बारे में उनका ज्ञान अंधश्रद्धा से शुरू होता है और वहीं खत्म हो जाता है। तर्क व सोच-विचार के सवाल पर उखडऩे लगते हैं। कहना चाहता हूं कि झांसाराम और फांसाराम जैसे लोगों को बलात्कारी बनाने में आप जैसे लोगों का बहुत बड़ा हाथ है, लेकिन कह नहीं पाता। बुजुर्ग हैं, व्यथित हैं। उनके मन को और ठेस पहुंचाना ठीक नहीं।

सच तो यह है कि इन दोनों ने इस देश में सदियों से संचित, पोषित, पूजित   संस्कृति  के साथ बलात्कार किया है, आस्था को लूटा है, आशा और विश्वास को ठगा है। दुनियाभर में 425 से अधिक आश्रम खोल दिए, 50 से अधिक गुरुकुलों की स्थापना कर दी और देश में हजारों एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया। वाह रे! झांसाराम।

अभी भी ऐसे लोग हजारों की संख्या में (हो सकता है लाखों में हों) हैं जो झांसाराम को अपना उद्धारक मानने के लिए बेताब हैं। उधर, झांसाराम भी देश के सबसे महंगे वकील के सहारे बच निकलने की कोशिश में हैं। झांसाराम को एक बार रू-ब-रू सुनने का मौका मिला था, तेल-फुलेल बेचनेवाले एक मदारी से ज्यादा कुछ नहीं लगे। उन्हें पांच मिनट भी सुनना मुश्किल लगा। उनके भक्तों में कुछ ऐसे लोग भी मिले जो मानते  हैं कि उनकी दुकान इन्हीं के आशीर्वाद से ही चल रही है या उनका कारोबार इन्हीं की कृपा से ही चल रहा है। जय राम जी की।

ऐसे लोग उन्हें बापू कहते हैं। बापू शब्द का ऐसा अवमूल्यन। ऐसे लोग हजारों की संख्या में हैं जो शब्दों की बाजीगरी, भाव-विह्वल होकर रोने-धोने की कला में माहिर हैं। लोगों के भोलेपन और अंधश्रद्धा के सहारे अपनी दुकान चमकाए जा रहे हैं। खुद अपनी राह का पता नहीं, दूसरों को भक्ति व ज्ञान की राह पर धकेल रहे हैं। अंधा अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़ंत। जिस देश ने विश्व को गीता जैसा प्रकाश दिया, वहां ऐसी अंधेर। इतना घना अंधेरा। श्रीकृष्ण, भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, संत कबीर, मीरा, नानक की भूमि पर ऐसे महिषासुर कब तक पैदा होते रहेंगे। मां दुर्गा इस बार दशहरा पर ऐसे राक्षसों का समूल सफाया करें और हमें विवेक दें। हमारी विवेकहीनता ही ऐसे लोगों की राह आसान करती है और जो इनसान कहलाने के काबिल भी नहीं हैं वे भगवान कहलाने लगते हैं।
विजयदशमी की ढेर सारी शुभकामनाएं।

8 comments:

  1. काश लोग अंधी भक्ति से बचें।

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  2. मैं तो इस बात से व्यथित भी होती हूँ और हैरान भी कि महिलाएं जो घर के काम में, हर निर्णय में तर्क से काम लेती हैं , एक की जगह हज़ार कारण खोज लेती हैं , वे इस अंधश्रद्धा के खेल में बड़ी संख्या में उलझी हैं .....

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  3. अंधी भक्ति का फायदा ही आज सभी साधू सन्त और बाबा लोग उठा रहे है ,इससे लोग बचे ,,,!
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!
    RECENT POST : अपनी राम कहानी में.

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  4. इतना कुछ होने के बाद भी जनता की अंधभक्ति देखिये की उसे भगवान मान पूज रही है। पढे लिखे लोग भी ऐसे झांसाराम टाइप बाबाओं के चक्कर मे पड़े रहते हैं कभी अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते .

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  5. झांसाराम तो कोई भी बन सकता है बस बेवकूफ बनने वाले होने चाहिए और न जाने क्यों लोग स्वयं पर विश्वास न रख कर ऐसे लोगों पर करते हैं ... क्यों ज़रूरत होती है ऐसे गुरुओं की ...

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  6. जब आस्था के साथ खिलवाड़ होता है तो कुछ ऐसे ही लफ्ज़ प्रस्फुटित होते हैं..सुंदर प्रस्तुति।।

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  7. बिलकुल सही कहें आप .....वैसे जो खबर उडी वह कितनी सच्ची कितनी झूठी पर यह सच हैं कि हम सब भावनाओं में जल्दी बह जाते हैं और ऐसे बाबाओं को भगवान् का दर्जा दे देते हैं ...महिलाओ की संख्या देख कभी कभी आश्चर्य होता हैं

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  8. ये तौहीन किसी व्यक्ति समाज या राष्ट्र की नहीं है भक्ति की जड़ों में छाछ डाला है निराशाराम ने।

    भक्ति का आधार प्रेम है। विश्वास है आस्था है। भक्ति प्रेमा भाव की भी हो सकती है दास्य भाव की

    कहते हैं भक्त में भगवान् वास करते हैं। यह अपमान भगवान् का है।

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