Wednesday, April 18, 2012

क्रिकेट का जश्न

इन दिनों देश में जबर्दस्त खुशी का माहौल है। दुधिया रोशनी में नहाए स्टेडियम, इठलाती, बलखाती चीयर बालाएं, रंग-बिरंगी पोशाकों में सजे-धजे क्रिकेटर, चौके-छक्के और तालियां बजाते लोग। यह सब देखने के लिए लालायित, कतारबध्द लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। जो खुशनसीब हैं स्टेडियम हो आते हैं, बाकी लोग टीवी पर सीधा प्रसारण देखकर संतोष कर रहे हैं।
उद्‌योगपतियों, फिल्मी सितारों की टीमें हैं जिनमें बोली लगाकर खरीदे गए खिलाड़ी हैं। दुनियाभर के खिलाड़ियों का जमघट है। डेयर डेविल्स, नाइट राडर्स जैसे नामों वाली टीमें हैं। घंटेभर पहले से ही विश्लेषण शुरू हो जाता है। कौन जीतेगा और क्यों जीतेगा, जैसे सवालों पर सेवानिवृत्त क्रिकेटर बहस करते हैं। समाचार चैनलों पर भी इसी चर्चा होती है। कौन सी टीम संतुलित है, और किसके चल जाने पर क्या हो सकता है? एक मैच खत्म होता है तो अगले दिन के मैच का इंतजार शुरू हो जाता है। जैसे क्रिकेट और यह देश एक-दूसरे के लिए ही बने हों।

क्रिकेट, इस देश में सरेआम सबसे ज्यादा बिकनेवाली चीज है। यही कारण है कि प्रति मैच लगभग चालीस करोड़ देकर उसके प्रसारण के अधिकार खरीदे जाते हैं। क्रिकेट की अपनी अलग ही दुनिया है, अपने भगवान भी। यहां न तो महंगाई की चिंता है, न ही सूखे से कोई परेशानी। देश में भ्रष्टाचार चरम पर होगा, यहां रोमांच चरम पर है। क्रिकेट का यह जश्न अब हमारी पहचान बनता जा रहा है। दुनिया में सबसे ज्यादा क्रिकेट के स्टेडियम हमारे देश में हैं और आबादी भी इतनी कि मैच कहीं भी हो, हजारों लोग तालियां बजाने के लिए मैदान में पहुंच ही जाते हैं। यहां दुधिया रोशनी देखकर आपको शायद ही अंदाजा हो कि हजारों गांव ऐसे हैं जहां अंधेरा भांय-भांय करता है। चौके-छक्के पर झूमते लोगों को देखकर कौन कहेगा कि यहां लाखों बेरोजगार हैं। यह खाते-पीते और डकारें लेते लोगों का खेल है जहां सवाल सिर्फ स्कोर जानने के लिए होते हैं। टीवी दिखाता है कि हमारे देश के लोग या तो स्टेडियम में तालियां बजाते हैं या किसी बाबा के दरबार में समाधान पूछते हैं।
आइए, इस जश्न में हम भी शामिल हो जाएं। आखिर नए भारत के निर्माण में हमारा भी कुछ योगदान तो होना ही चाहिए।

7 comments:

  1. यहां दुधिया रोशनी देखकर आपको शायद ही अंदाजा हो कि हजारों गांव ऐसे हैं जहां अंधेरा भांय-भांय करता है। चौके-छक्के पर झूमते लोगों को देखकर कौन कहेगा कि यहां लाखों बेरोजगार हैं। यह खाते-पीते और डकारें लेते लोगों का खेल है जहां सवाल सिर्फ स्कोर जानने के लिए होते हैं। टीवी दिखाता है कि हमारे देश के लोग या तो स्टेडियम में तालियां बजाते हैं या किसी बाबा के दरबार में समाधान पूछते हैं।

    विचारणीय आलेख..... न जाने यह नया भारत बन रहा है या कुछ और ही हो रहा है.....

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  2. संवेदनशीलों की संवेदना का आयाम धुर ग़रीबी से धुर अमीरी तक बहता है। कितना संभालें और कहाँ तक संभालें।

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  3. क्या सटीक व्यंग कसा है हमारे देश की व्यवस्था पर.........
    खैर चलिए जश्न में हम भी शामिल हैं...और करें भी तो क्या!!!!!!!!!!!!!!!

    अनु

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  4. Bahut hi Sundar prastuti. Mere post par aapka intazar rahega. Dhanyavad.

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  5. आखिर नए भारत के निर्माण में हमारा भी कुछ योगदान तो होना ही चाहिए।
    .........यही एक पंक्ति है जो लेख लिखने की मंशा को अभिव्यक्त करती है।

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