Thursday, December 22, 2011

जीवन=प्रेमगीत

आज एक गीत की चर्चा करने का मन है। यह ऐसा गीत है जब भी सुनता हूं, पहले से ज्यादा सुंदर लगता है, युवावस्था के बाद की पत्नी की तरह, नित नूतन और चिरयुवा। प्रश्न उठता है कि युवावस्था के बाद की पत्नी की तरह क्यों? मेरे खयाल से युवावस्था एक खुमार की तरह है जिसके प्रभाव में आप प्रेम की गहराइयों तक नहीं उतर पाते। युवावस्था में ज्यादातर प्रेम शरीर के स्तर पर तक सीमित रह जाता है जो प्रेम की नदी का पहला किनारा तो हो सकता है, गहराई नहीं।
जी हां, यह गीत जब भी सुनता हूं, यह मुझसे कहता है, मुझे सिर्फ सुना तो मुझे चूक जाओगे। मेरे  भीतर उतरो, या मुझे अपने भीतर उतर जाने दो। डूबो। मुझे पियो, मुझे जियो।
इस गीत में प्रेम है। वैसे तो हर गीत में होता है, प्रेम के बिना गीत कैसे उपज सकता है? वही तो धरती है जिसपे बीज बोये जाते हैं, फूल खिलते हैं। इस गीत में प्रेम पूर्णिमा के चांद की तरह पूर्ण है, इठलाता हुआ, दमकता हुआ, भरा हुआ, छलकता हुआ, चांदनी लुटाता हुआ। गीत की कोई भी परिभाषा, कैसी भी कसौटी हो, यह खरा उतरता है। गीत अपने आप में पूर्ण इसलिए भी है क्योंकि यह श्रोता के भीतर एक संसार बसा देता है, उसे एक ऐसे लोक में ले जाता है जहां सिर्फ प्रेम है। गीत का एकएक शब्द कलम से नहीं, दिल से निकला है। तभी तो इसमें अरमानों की उड़ान है, सपनों का बयान है। गीत बताता है कि प्रेम हो जाने के बाद कैसे धरती छोटी लगने लगती है और इस दुनिया के सारे सुख फीके और थोड़े। मन चांद-सितारों के पार कहीं खो जाना चाहता है। जहां तक संगीत का सवाल है, गीत में उसकी भूमिका दुल्हन की मांग में सिन्दूर की तरह है। गीत में जान तो पहले से ही थी, संगीत ने उसे जानदार बना दिया है। बेशक, आपने इस गीत को पहले सैकड़ों बार सुना होगा, इस बार सिर्फ सुने नहीं, इसे भीतर उतरने दें। अनिर्वचनीय सुख की अनुभूति होगी। क्योंकि यह सिर्फ गीत नहीं, इसमें प्रेम है, पूर्णिमा की चांद की तरह निर्मल, भावविभोर व मंत्रमुग्ध करनेवाला।
गीत प्राणों में उतर रहा हो और सहजस्फूर्त ढंग से यदि होठ गुनगुनाने लगें तो उन्हें रोकिएगा मत। जीवन एक गीत भी है। जिंदगी गाती है आप कौन होते हैं रोकनेवाले।  गीत आपका हाथ पकड़कर ले जाएगा, ऐसी दुनिया में जहां प्रवेश की एकमात्र शर्त दिलदारी है। प्रतिक्रिया तभी दें जब यह गीत मन को प्रेम की मधुशाला में ले जाए और प्यास बुझने के साथ ही प्यास बढ़ने का एहसास हो।
इस लिंक पर क्लिक करें. (गीत यू  ट्यूब से साभार)

http://www.youtube.com/watch?v=l2bl57tFlLQ&feature=related

Saturday, December 3, 2011

ऋण लेकर 'घी पीने' का नतीजा

उदारीकरण और वैश्वीकरण के नाम पर नब्बे के दशक में जिस पूंजीवादी व्यवस्था के लिए पलक-पांवड़े बिछाए गए थे, उसके दुष्परिणाम अब भयावह रूप में सामने आने लगे हैं. जिस देश में आदमी नमक-रोटी खाकर चैन की नीद सोता था, वहीँ अब बेचैनी और तनाव के शिकंजे में कसमसाते लोगों की संख्या बढ़ रही है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि जहाँ चादर देखकर पांव पसारने की सीख  दी जाती थी थी वही ऋण लेकर घी पीने की मानसिकता को बढ़ावा दिया गया.जहाँ संयम जीवन का आधार था, वहीँ असीम भोग की लालसा की तृप्ति के साधन जुटाने की होड़ मच गई. बाज़ार ग्राहक का इंतजार करने के बजाय सीधे उसके घर में घुसने लगा, आसानी से उपलब्ध ढेर सारा ऋण लेकर. वही ऋण अब जानलेवा साबित हो रहा है.
देश में ऋण के बोझ से दबे कुल दस हजार से अधिक लोगों ने वर्ष 2010 में मौत को गले लगा लिया. जो ऋण हँसते-हंसते लिया गया था, बह करुण क्रंदन का कारण बन गया.अनंत इच्छाओं और सपनों को पूरा करने के लिए बिना सोचे-समझे ऋण का सहारा लेने का ही नतीजा है कि किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में लोग मौत के दरवाजे पर दस्तक देने लगे हैं।
बेंगलूरु में शुक्रवार को एक चिकित्सक परिवार के चार लोगों की आत्महत्या से एक बार फिर हमारे जीवन की दशा और दिशा पर सवालिया निशान लग गया है। आत्महत्या करने वाले उस वर्ग से हैं जिसे प्रबुध्द ही नहीं, जीवनदाता भी कहा जाता है। आखिर क्या कारण है कि जिन्हें जिंदगी से लोगों को जोड़ने की भूमिका निभानी चाहिए थी, वही दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। जाहिर है, सपनों और हकीकत के बीच तालमेल टूट रहा है जिसके कारण सपने लहुलुहान हैं। हम सुख व संतोष ऐसी जगह तलाश रहे हैं, जहां वह है ही नहीं। कहां गई वह खुशमिजाजी, वह जिंदादिली जो गरीबी में भी लोगों को खुशहाल रखती थी? कहाँ खो गए वो जीवन मूल्य जो कठिन परिस्थितियों में भी आशा और विश्वाश से हमें जोड़े रखते थे.आखिर क्यों बाहर से समृध्द दिखने के बावजूद हम भीतर से दीन- हीन और दरिद्र होते जा रहे हैं.दिखावे और झूठी शान के पीछे भागते समय हमें यह सोचना ही होगा कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। जरूरत और लोभ के बीच का अंतर हमें समझना ही होगा और यह भी कि सम्पन्नता व सफलता से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण सार्थकता है।