Thursday, March 10, 2011

इसमें कोई महानता-वहानता नहीं

अरे! आप कब आये? रुकिए, रुकिए, मैं आ रहा हूँ.
कक्कू ने कहा तो मेरे कदम रुक गए.
मेरी इच्छा हो रही थी कि वहां तक जाऊं, जहाँ चम्पा काकी थीं.
कक्कू गावं के सबसे बुज़ुर्ग  लोगों में से हैं, इसीलिए सारा गाँव उन्हें कक्कू कहता है.पास आने पर मेरा हाल पूछने लगे, मैंने कहा, पहले आप बताइए कि काकी कैसी है? बोले, क्या बताऊँ. कोमा में है.देखो जितने दिन चल जाए. कुछ बोल नहीं पाती.आँखों के कोरों से जब-तब कुछ आंसू टपकते हैं.बस.
डॉक्टर क्या कहते है,
जवाब दे चुके हैं.,
कक्कू के स्वर में कुछ ऐसा था, जिसे शब्दों में बता पाना कम से कम मेरे लिए संभव नहीं है.
मैंने कहा, आपने मुझे वहां आने से क्यूँ रोक दिया.
बोले, आपका वहां आना ठीक नहीं था, मैं उसके कपडे बदल रहा था.थोड़ी देर रुके फिर बोले, अब वहां कोई नहीं जाता. अब तो सब कुछ खाट पर ही....नहलाना- धुलाना, कपडे बदलना, जैसे-तैसे कुछ खिला देना. इन्हीं सब में लगा रहता हूँ.
बात आगे चले इससे पहले बता दूं कि मैं इलाहाबाद जिले के एक गाँव का हूँ और यह बात वहीँ की है. शहर से (हमारे गाँव में परदेश कहा जाता है ) साल में एकाध बार ही गाँव जाना हो पाता है. गाँव जाने पर लोग देखने या मिलने जरूर आते हैं.छोटा सा गाँव है, अभी थोडा-बहुत अपनापन बना हुआ है. मिलने आने वालों में सबसे आगे हुआ करती थीं चंपा काकी. कहाँ है हमार बेटवा, कहते हुए आतीं. जोर-जोर से बोलतीं, बड़ी आत्मीयता से. बड़ी दबंग महिला थी. गाँव गया और जब चम्पा काकी मिलने नहीं आई तो पूछा कि चम्पा काकी नहीं दिखाई दीं. बताया गया कि बीमार है.मैंने कहा मैं मिलकर आता हूँ. बताया गया कि अब न तो वो बोल पाती हैं न ही कुछ सुन या समझ पाती हैं. मुझे आश्चर्य हुआ कि चम्पा काकी न बोल पायें, ऐसा कैसे हो सकता है?
 बहरहाल, सबसे आगे बढ़कर घुलने-मिलनेवाली चम्पा काकी, सबका हाल पूछनेवाली चम्पा काकी सचमुच बोल पाने में असमर्थ थी. वक़्त इतना क्रूर हो सकता है, कौन जानता था.
आठ दिन गाँव में रहा, जब भी जाता कक्कू को काकी की तीमारदारी में लगा पाता.कभी उनके कपडे साफ़ करते नजर आते, कभी नहला रहे होते. या कपडे पहना  रहे होते, कभी बालों में कंघी करने के बाद मांग में सिन्दूर भर रहे होते. हर बार कहते, रुकिए मैं आ रहा हूँ. मुस्कुराकर पूछते क्या हाल है.उनके चेहरे पर मैंने कभी खिन्नता नहीं देखी. कभी नहीं लगा कि वह कोई ऐसा काम कर रहे हैं जो उन्हें पसंद नहीं है. कई माह से बीमार पत्नी की सेवा कर रहे थे, बिना किसी शिकायत के.
पिछली बार गाँव गया तो काकी जा  चुकी थीं. मैंने कक्कू को काकी की सेवा की याद दिलाई और कहा, वह महान कार्य था. बोले, इसमें कोई महानता-वहानता नहीं. वह मेरी धर्म पत्नी थी और उसकी देखभाल मेरा धर्म. उसकी जगह मैं होता तो वह वही करती जो मैंने किया. छोडो,अपना सुनाओ, कैसे हो?


Monday, March 7, 2011

शांति सम्मेलन

हाल ही एक शांति सम्मेलन में जाना हुआ. आयोजन चूँकि नगर के एक प्रसिध्द सेठ की ओर से था, लिहाजा खाने-पीने का समुचित प्रबंध था. शुरू में ही आगंतुक लोग व्यंजनों पर ऐसे टूटे जैसे कोई चांस न लेना चाहते हों. मैंने भी तर माल उड़ाया तो पेट में शांति सी महसूस हुई और मुझे लगा कि ऐसे आयोजन निरर्थक नहीं होते.
सबसे पहले सेठ जी ने स्वयं माइक संभाला. बोले, मेरा नाम शांतिलाल है.
मैं बचपन से ही शांति का समर्थक रहा हू.किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते मैं शांति का प्रेमी और पुजारी बन चुका था. पूरी दुनिया को भले ही आज  शांति कि आवश्यकता महसूस हो रही हो, मैं युवा होते ही समझ गया था कि शांति के बिना सब कुछ बेकार है.सभागार करतल ध्वनि से गूँज उठा.
सेठ जी और जोश में आये.बोले, कॉलेज में पढ़ रहा था तभी मुझे एहसास हो गया कि शांति के बिना मैं नहीं रह सकता. मैं उसे लेकर भाग गया था. मैंने शांति को हमेशा के लिए अपना बना लिया और आज वह मेरी धर्मपत्नी है.तब से लेकर आज तक मैं शांति से ही काम लेता हूँ.मैं आप सभी को आश्वस्त कर देना चाहता हूँ कि शांति मेरे घर में सुरक्षित है.
सेठजी के सारगर्भित भाषण क़ी सराहना में तालियाँ फिर बजीं.
संचालक ने ऊंघ रहे क्षेत्रीय विधायक  से दो शब्द बोलने का अनुरोध किया.विधायकजी इलाके में कई बार और पबों के मालिक थे. कहा जाता था कि इलाके में शांति या अशांति जैसी  कोई भी चीज उनकी मर्ज़ी के बिना नहीं हो सकती थी. राजनीति को  गरिमा मंडित करने से पहले वे क्षेत्र में दहशत फैलाया करते थे.
बोले, मैं शांति का घोर समर्थक हूँ.जिधर से भी गुजरता हूँ शांति छा जाती है.साल में एक बार मैं इलाके में गणेशा को बिठा देता हूँ. लाउड स्पीकर पर हरी ॐ हरी , ॐ शांति ॐ जैसे गाने बजाता हूँ और लोगों को शांति का सन्देश दे देता हूँ.जिस दिन गणेशा को नदी में डालकर आता हूँ, इलाके में अपूर्व शांति होती है. कोई ज्यादा चू-चपड करे तो मैं उसे शांत करना भी जानता हूँ. मैं समझता हूँ क़ी सारे देश के लोग मुझसे प्रेरणा लेकर शांति में सहायक बन सकते हैं.
दर्शकों में मौजूद नेताजी के कुछ आदमियों ने जिंदाबाद के नारे लगाये.
इसके बाढ़ कुछ बुध्दिजीवी  किस्म के लोग बोले.उन्होंने गौतम बुध्द, महात्मा  गाँधी, सौहार्द, अहिंसा, विश्वबंधुत्व जैसे विषय पर बोलना शुरू किया तो अधिकांश लोग जम्हाई लेने लगे. जैसे कि गौतम और गाँधी से ज्यादा अप्रासंगिक और कुछ न हो.कुछ लोग लघु शंका आदि से निवृत होने चल दिए.
मुख्य अतिथि एक केन्द्रीय मंत्री थे.उन्होंने कहा कि आज देश में सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों में शांति व् धैर्य क़ी कमी है.विपक्ष संसद में अशांति  मचाये रहता है और मीडिया संसद के बाहर. एक कुत्ता भी कुएं में गिर जाये और उसे बचाने के लिए हेलीकाप्टर नहीं पहुंचे तो मीडिया ऐसा हल्ला मचाता है जैसे अनर्थ हो गया.
उन्होंने कहा, चूंकि विकास के लिए शांति आवश्यक है, इसलिए हम शांति स्थापना के लिए कटिबध्द हैं.ऐसा कहते हुए उन्होंने कमर पर पजामे के नाड़े को कसकर बांधा, लोगों ने तालियाँ बजाई. 
मंत्री ने कहा, सच तो यह है क़ी यदि हम शांति से कम लेना सीख लें तो वह खुद आ जाती है.कुछ  साल पहले उड़ीसा में भुखमरी फैली, हमने शांति से कम लिया, बाद में वहां महामारी फैली और अब वहां शांति है.आज जो महंगाई बढ़ रही है, यह भी शांति में सहायक होगी, बस देखना यह है कि इससे कितने लोग शांत हो पाते हैं. मंत्रीजी ने कहा कि हम सदियों से पूरे विश्व को शांति का सन्देश देते आये है.शांति हमारा स्वभाव है. हमारे धर्मगुरु कहते हैं कि शांति चाहते हो तो शांत हो जाओ, अकर्ता हो जाओ.आइये शांत हो जाएँ.
करतल ध्वनि के साथ सम्मेलन का समापन हुआ. समापन के बाद नाश्ता करते समय अधिकांश लोगों क़ी राय थी कि ऐसे आयोजन समय-समय पर होते रहें.
आपका क्या ख्याल है?